श्रीमद्भगवद्गीता के 10 प्रसिद्ध श्लोक (संस्कृत मूल, हिन्दी अर्थ सहित) प्रस्तुत हैं:

1. कर्मण्येवाधिकारस्ते

श्लोक:
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ (अध्याय 2, श्लोक 47)

भावार्थ:
मनुष्य को केवल कर्म करने का अधिकार है, फल पर नहीं। फल की चिंता किए बिना कर्म करो।


2. आत्मा अमर है

श्लोक:
न जायते म्रियते वा कदाचि-
न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥ (अध्याय 2, श्लोक 20)

भावार्थ:
आत्मा न कभी जन्म लेता है और न कभी मरता है। शरीर नष्ट होने पर भी आत्मा नष्ट नहीं होती।


3. शांति का मार्ग

श्लोक:
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात् संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥ (अध्याय 2, श्लोक 62)

भावार्थ:
विषयों का चिंतन करने से आसक्ति होती है, आसक्ति से कामना और कामना से क्रोध उत्पन्न होता है।


4. ज्ञान योग

श्लोक:
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-
न्यन्यानि संयाति नवानि देही॥ (अध्याय 2, श्लोक 22)

भावार्थ:
जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र त्यागकर नये वस्त्र पहनता है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीर छोड़कर नया शरीर धारण करती है।


5. समत्व योग

श्लोक:
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि॥ (अध्याय 2, श्लोक 38)

भावार्थ:
सुख-दुःख, लाभ-हानि और जय-पराजय को समान समझकर कर्तव्य पालन करो।


6. भक्तियोग

श्लोक:
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः॥ (अध्याय 9, श्लोक 26)

भावार्थ:
यदि कोई प्रेम और भक्ति से पत्र, पुष्प, फल या जल भी अर्पित करता है, तो मैं उसे स्वीकार करता हूँ।


7. सर्वधर्मान्परित्यज्य

श्लोक:
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥ (अध्याय 18, श्लोक 66)

भावार्थ:
सब धर्मों को छोड़कर केवल मेरी शरण आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा।


8. जो कुछ करो मुझे अर्पण करो

श्लोक:
यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत्।
यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम्॥ (अध्याय 9, श्लोक 27)

भावार्थ:
जो भी तुम कर्म करो, जो भी दान दो, जो भी तप करो, उसे मुझे अर्पण करो।


9. स्थिर बुद्धि

श्लोक:
स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव।
स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम्॥ (अध्याय 2, श्लोक 54)

भावार्थ:
हे केशव! स्थिर बुद्धि वाले समाधिस्थ पुरुष का लक्षण क्या है? वह कैसे बोलता है, कैसे बैठता है और कैसे चलता है?


10. योग का सार

श्लोक:
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥ (अध्याय 2, श्लोक 48)

भावार्थ:
हे अर्जुन! योग में स्थित होकर, आसक्ति छोड़कर और सफलता-असफलता में समान रहकर कर्म करो। यही योग है

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